Posted inअभिव्यक्ति

अहं! रंगमंचास्मि।

अहं! रंगमंचास्मि,मैं रंगमंच हूं वही रंगमंच जिसे कोई रंग+मंच = रंगमंच कहकर परिभाषित करता है तो कोई कुछ और परिभाषा देता है। लेकिन क्या मेरी परिभाषा को सीमाबद्ध किया जा सकता है ?उत्तर होगा कदापि नहीं। प्रस्तुत लेख के लेखक अजय दाहिया है,प्राप्त्याशा लोक एवं संस्कृति प्रवर्तन समिति के सदस्य है अहं! रंगमंचास्मि, रंगमंच का […]