पौष पुत्रदा एकादशी इस वर्ष की पहली एकादशी होगी। पुत्रदा एकादशी का व्रत 13 जनवरी 2022 को रखा जाएगा। ऐसे में मान्यता है,की व्रत करने वाले श्रद्धालु को भगवान श्री हरि विष्णु के इस अत्यंत कल्याणकारी व्रत के कथा को पढ़ना या फिर सुनना चाहिए। ऐसे में हम आज आपको पौष पुत्रदा एकादशी के व्रत कथा के साथ–साथ पुत्रदा एकादशी के पूजा विधि के बारे में भी बताने जा रहे है।
पौष पुत्रदा एकादशी 2022 के व्रत का नियम
- पौष पुत्रदा एकादशी के दिन व्रती को प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठाना चाहिए।
- सुबह स्नान ध्यान करने के पश्चात व्रती को भगवान श्रीहरि विष्णु की स्तुति और आरती करनी चाहिए।
- इस दिन व्रती को भगवान श्रीकृष्ण के लड्डू गोपाल रूप की पूजा करनी चाहिए।
- पौष पुत्रदा एकादशी के व्रत को तीन प्रकार से रखा जाता है। जिसमे निर्जला,जलीय और फलाहार है।
- निर्जला का अर्थ बिना जल के व्रत,जबकि जलीय का केवल जल ग्रहण करके उपवास करना तथा फलाहार का मतलब फल खाकर उपवास करना।
पौष पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रावती राज्य में एक सुकेतु मान नाम का राजा राज्य करता था जिसकी पत्नी का नाम शैव्या था। राजा के पास सब कुछ था लेकिन संतान नहीं थी। इस कारण राजा और रानी दोनों ही बहुत उदास रहा करते थे। राजा को हमेशा ही पिंडदान की चिंता लगी रहती थी। ऐसे में राजा ने अपने प्राण लेने का मन बनाया लेकिन अपनी जान लेने का पाप करने के डर से उसने यह विचार त्याग दिया। राजा का मन इस कारण राजपाठ में नहीं लग रहा था तो वह 1 दिन जंगल की ओर चला गया। जंगल में उसने पक्षी और जानवर देखें जिन्हें देख देखकर उसके मन में बुरे विचार आने लगे। इसके बाद राजा दुखी होकर तालाब के किनारे बैठ गए। तालाब के किनारे कई सारे ऋषि-मुनियों के आश्रम बने हुए थे। वहां राजा गए और उन्होंने ऋषि-मुनियों को नमस्कार किया जिसके बाद ऋषि मुनि उन्हें देखकर प्रसन्न हो गए। राजा को उदास देखकर ऋषि मुनि असमंजस में पड़ गए और न चाहते हुए भी पूछ बैठे कि राजा क्यों उदास है। राजा ने अपनी उदासी का कारण बताया। उन्होंने कहा कि राजा आप अपनी इच्छा बताएं। राजा ने अपनी मन की सभी चिंताएं उनके सामने रख दी और राजा से कहा कि पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से आपको अच्छे तरीके से इसका फल मिलेगा और संतान की प्राप्ति होगी। राजा ने भी ऋषि-मुनियों की बात सुनकर एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी को इसका विधि विधान पूरा किया इसके फल के कारण कुछ ही दिनों में गर्भवती हो गई और 9 महीने बाद राजा को संतान की प्राप्ति हुई। इस प्रकार पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान की प्राप्ति के लिए विख्यात हुआ।