उलझी सियासत : व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताएं रोटी,कपड़ा और मकान होती है। किंतू वर्तमान परिदृश्य में रोटी,कपड़ा और मकान की आपूर्ति करना भी दुष्कर है। आज के आधुनिक कंप्यूटर युग में वायुयानों,रॉकेट प्रक्षेपणों,इंटरनेट,सोशल मीडिया एवम रोबोट जैसे चीजों का प्रयोग हो रहा है,किंतू ऐसे समय में भी,बहुत बड़ी मात्रा में भी भुखमरी दिखाई देती है। ऐसी परिस्थिति में अपना विकासशील भारत वर्ष भी भुखमरी की चपेट में है। भारत वर्ष वैश्विक भूख सूचकांक के अनुसार 140वें स्थान पर है। जोकि अपने से छोटे देश नेपाल,पाकिस्तान से भी पीछे है।
प्रस्तुत लेख उलझी सियासत के लेखक कलामुद्दीन अंसारी(Kalamuddin Ansari) है, जो भारत प्रहरी के सदस्य है। यह मूल रूप से माध्यमिक के छात्र है। यह आमतौर पर लेख लिखते रहते है।
अब आते हैं, अहम मुद्दों पर बहुत सारे योजनाओं, बहुत सारे परियोजनाओं के बाद भी भारत वर्ष भुखमरी सूचकांक में इतने निचले पायदान पर आखिर क्यों है? गत वर्ष 2020 कोविड19 से पूरा विश्व प्रभावित हुआ था। इससे अपना भारत भी अछूता नहीं रहा,इस महामारी के दौरान खाद्य-आपूर्ति की व्यापक व्यवस्था के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा खाद्य आपूर्ति की व्यापक व्यवस्था की गई। उसके बावजूद भी ऐसी दशा में भुखमरी क्यों?
चूंकि हमने पहले ही कहा की, व्यक्ति कि मूलभूत आवश्यकताओं में रोटी,कपड़ा,मकान होता है। जिसे पूरा करने के लिए किसी रोजगार का होना अति आवश्यक होता है। रोटी,कपड़ा,मकान के बाद चौथा स्थान शिक्षा का आता है। जिसके बिना मनुष्य अधूरा है। रोजगार परिवार के लिए सबसे बड़ी मजबूती व सबसे बड़ी समस्या भी है। यदि रोजगार हेतु सारी आपूर्ति हो सकती है। यदि रोजगार नहीं है,तो सरकारों पर आश्रित रहना पड़ता है। भारत और विश्व में एक और समस्या है, जिसका नाम है,बढ़ती हुई जनसंख्या।
बढ़ती जनसंख्या के कारण रोजगार,भूभाग और सारी समस्याएं बढ़ती जाएंगी। जो भारत के साथ समूचे विश्व के लिए बड़ी समस्या हो जाएगी।
अब बात करते हैं,हम सरकारी तंत्र,राजनीतिक सिस्टम जिसे सामान्य भाषा में हम लोकतंत्र के नाम से जानते है। जिसे अब्राहम लिंकन ने परिभाषित करते हुए कहा था, कि “लोकतंत्र के लिए जनता के द्वारा चुने गए सरकार को लोकतंत्र कहते हैं” इसका शाब्दिक अर्थ लोगों का तंत्र
आज राजनीतिक करण में इसकी लोकतंत्र की परिभाषा का अर्थ– आज के राजनेता, राजनीति को अपना व्यवसाय बनाकर पूरे सिस्टम को बर्बाद कर दिए हैं। आज अपना युवाओं का देश कहे जाने वाले भारत खराब सिस्टम से लड़ रहा है। राजनेता चुनाव आते ही चिकनी–चुपड़ी बातें करके, भली–भली जनता को आसानी से बेवकूफ बना देते हैं। एक–दूसरे की पार्टियों का विरोध करते हुए,जातिगत राजनीति,धार्मिक राजनीति,क्षेत्रीय राजनीति करना शुरू कर देते हैं। यह भूल जाते हैं,कि इसमें देश की अखंडता,अक्षुण्ता में बाधा पड़ सकती है। किंतु अपने राजनीतिक लाभ के लिए इन सारे तथ्यों का प्रयोग करते हैं। तथापि जनता को भ्रमित करते रहते हैं। जिससे जनता को मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना संभव नहीं है। इन राजनेताओं की धंधे में सारी योजनाएं आ जाती है। अपनी सारी सुख–सुविधा पूरा कर सकते हैं।
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