परीक्षा में पास फिर भी युवा है बेरोजगार, हमारे जैसे लॉखो युवा है इस देश मे जो बचपन से ही मन मे ख्वाब बुनते आ रहे है कि पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी करूंगा और अपने परिवार जनों का सहारा बनूंगा लेकिन यह ख्वाब तो महज ख्वाब बनकर ही रह गया है।
लेखक अमन सिंह यूथ पॉवर एसोसिएशन के प्रांतीय स्वयंसेवकों के को ऑर्डिनेटर है
समय बदला, सियासी लोग बदले,सरकारें बदली किन्तु नही बदला तो देश के युवाओं का हाल… सत्ता किसी की भी रही हो,सबके अपने अपने अलग वादे पर उन वादों पर खरा कौन उतरा शायद यह वादे देने वाले भी नही जानते।
किसी विद्वान ने कहा है कि 19वी सदी अंग्रेजों का,20वी सदी अमेरिका तो 21वी सदी भारत का होगा क्योंकि भारत के युवाओं में वो शक्ति है ,जज्बा है ,हुनर है जो भारत को पुनः शीर्ष पर ले जा सकता है।
आज देश मे करोड़ो युवा बेरोजगार है तो इसका जिम्मेदार कौन है?जहां तक बेरोजगारी पर मेरी सोच है कि क्या देश के युवा नौकरी के योग्य नही!अथवा नौकरी युवाओं के योग्य नही।यह विचारणीय विषय है।हम भारत के लोग है जहां बच्चे के जन्म लेते ही परिवार का ख्वाब देखना शुरू हो जाता है कि मेरा बच्चा एक दिन सरकारी नौकरी करेगा और हमारे परिवार का नाम रोशन करेगा,परिवार की स्थिति सुदृढ़ होंगी।लेकिन कल को जब वही बच्चा पढ़ लिखकर बेरोजगार हो जाता है तो परिवार के सपने पल में ही चकनाचूर हो जाते है।प्रश्न उठता है सिस्टम पर कि जब एक युवा अपने सपनो को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत व लगन से परिश्रम करता है,पढ़ाई करता है,परीक्षा देता है और पास भी होता है तो भी आश्चर्य की बात है कि इतना सब करने के बाद भी उसको नौकरी नही मिलती आखिर क्यों!देश मे लगभग 55-60% युवा है,फिर भी उस देश बेरोजगारी, यह बात चिंतित करने वाली है।आंकड़े बया करते है कि 21-22 करोड़ आबादी वाले अकेले उत्तर प्रदेश में लॉखो की संख्या में पढ़े लिखे युवा नौकरी की तलाश में भटक रहे है और कइयों ने स्वंय पर से नियंत्रण ही खो दिया और मौत को गले लगाकर आत्महत्या कर ली।इसका जिम्मेदार कौन आखिर!शिक्षा विभाग या यहां का सिस्टम।
कहा जाता है कि एक पढे लिखे व्यक्ति के लिए नौकरी पाना आसान होता है पर कैसे?वो पढ़ा लिखा व्यक्ति परीक्षा तो देता है पर उसका परिणाम सालों साल नही आते,वो पास तो होता है पर उसको नौकरी नही मिलती।
गाँधी जी ने अपने विचार में कहा था कि बुद्धि की शिक्षा,हाथ,पैर,आदि शरीर के अंगों के ठीक अभ्यास से ही हो सकती है लेकिन मस्तिष्क के साथ शरीर का विकास न हो तो यह आंतरिक विकास नही अपितु केवल मस्तिष्क का विकास है,और इससे कोई लाभ नही।
आज देश में भर्तियां ही नही हो रही है यदि है भी तो परीक्षा नहीं, परीक्षा का परिणाम आने में सालों साल लग जा रहे,और जो पास है उनको नौकरी ही नही है।सबसे बड़ी समस्या कि हर प्रश्न पत्र में दो-चार प्रश्न गलत क्यू?और अंत मे उसी प्रश्न को लेकर युवा न्यायालय का दरवाजा खटखटाये।
यह व्यवस्था कब सही होगी!युवाओं के भविष्य के बारे में सरकारें कब गहनता से विचार करेंगी!यदि अब भी युवाओ के भविष्य पर विचार न हुआ तो यकीनन आने वाले समय मे देश की हालत बहुत ही दयनीय हो सकती है।