प्रस्तुत निबंध ‘वर्तमान समाज की दुर्दशा’ के लेखक समीर अंसारी(Sameer Ansari) है। जो एक छात्र है। समीर अंसारी(Sameer Ansari) उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के ग्राम असिलाभार के निवासी है।
हम वर्तमान में जिस वातावरण में रहते हैं तथापि जिन लोगों के साथ रहते हैं, जैसा बोलते हैं, जैसा खाते हैं,सब हमारे समाज की ही देन है। हमारा रहन-सहन, हमारा व्यवहार, चरित्र, भाषा यह सभी चीजें हमारे समाज एवं आसपास के वातावरण पर निर्भर करती है। अब बात करते हैं, हम अपने वर्तमान समाज की जो कि दिन-प्रतिदिन दूषित होता जा रहा है। समाज में रहने वाले लोगों में हमारी प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति, दिन – प्रतिदिन समाप्ति की ओर अग्रसर है।
प्राचीन समय में लोग एक दूसरे को दया की दृष्टि से देखते थे। आज कल के लोग ईर्ष्या, जलन आदि भावनाओं का विकास अत्यंत दुर्बल था। लोगों में भाईचारा, बंधुता एवं सहिष्णुता का भाव था। प्रत्येक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के सुख दुख में शामिल रहता था। लोगों में पशु-पक्षियों के प्रति दया एवं करुणा की भावना विकसित थी। लोग एक-दूसरे से जाति-धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं करते थे। चारों ओर शांति का माहौल रहता था। लोग अधिकतर समय अपनों के साथ व्यतीत करना चाहते थे तथापि लोग त्योहारों को धूमधाम से मनाते मनोरंजन करते हैं और संग बैठकर खाते-पीते थे।
प्राचीन सभ्यता में लोग पेड़-पौधे,सूर्य की पूजा, अर्चना करते तथा उनका उपयोग उचित प्रकार से करते थे। तब इस वातावरण एवम समाज में अत्याचार का नामों निशान दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता था, परंतु अब हमारे समाज में यह सब परंपराए समाप्ति की ओर बढ़ती जा रही है। लोगों में दया – दान, करुणा,भाईचारे की भावना समाप्त होती जा रही है। लोग एक-दूसरे को जाति तथा धर्म के नाम पर घृणा की भावना से देखते हैं। लोगों में मानवता दिन-प्रतिदिन घटती हुई, नजर आ रही है।
आज के समाज का प्रत्येक अंग जैसे – जल,वायु, पेड़- पौधे, जानवर दूषित हो रहे है। एक देश, दूसरे देश को बर्बाद करने पर तुला है। लोग हैवानियत का शिकार होते चले जा रहे हैं। आज के समाचार पत्रों की हैडलाइने, हमारे समाज की दर्दनाक कहानियां सुना रही हैं। लोगों का एक-दूसरे से विश्वास उठ गया है।
अगर कोई व्यक्ति सुबह घर से बाहर निकलता है, तो उस व्यक्ति के शाम तक वापस ना आने पर परिवार के लोगों को उसकी चिंता लगी रहती है। चोरी, डकैती, धोखाधड़ी, अपहरण,बलात्कार जैसी घटनाएं,आज के समाचार पत्रों की हेडलाइन बनकर, हमारे सामने आती है।
आजकल के बच्चे एवम नवयुवक, जो कल हमारे समाज के भविष्य हैं, वह सब भी इस हैवानियत भरे वातावरण का शिकार हो रहे हैं। नौजवान युवक व युवतियां भी शराब, धूम्रपान एवं नशीले पदार्थो का सेवन कर रहे हैं।
प्राचीन काल में जो वैद्य रोगी का उपचार करते थे, वह इस कार्य को मानवता का कल्याण मानते थे, परंतु आज के डॉक्टर जिन्हे ईश्वर का दूसरा रूप कहा जाता है। वे इतने लालची और मक्कार हो गए हैं, कि पैसों के लिए गरीब बच्चों के अंगों को बेच रहे हैं। इस तरह के कार्यों से मानवता का उल्लंघन हो रहा है, हमें अपने देश एवं समाज को सुधारना होगा ताकि पृथ्वी पर मानवता बनी रहे।