परमा एकादशी व्रत 13 अक्टूबर को रखा जाएगा,क्या है महत्व? कैसे करें पूजन ?,परमा एकादशी व्रत तीन वर्ष में केवल एक ही बार आता है। क्योंकि यह व्रत अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है।
एकादशी मास में 2 बार और वर्ष में 24 बार आती है परन्तु जिस वर्ष अधिलमास या मलमास पड़ता है। उस वर्ष 26 एकादशी पड़ती है। अधिक मास में दो एकादशी पड़ती है। शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी कहते है। जबकि कृष्ण पक्ष की एकादशी को परमा एकादशी कहते है। इस बात अधिकमास 18 सितंबर से 16 अक्टूबर के बीच पड़ रहा है। आपको बता दे की पद्मिनी एकादशी 27 सितम्बर को थी और परमा एकादशी 13 अक्टूबर को पड़ था है। परमा एकादशी की तिथि हिन्दू पंचाग के अनुसार 12 अक्टूबर को शाम 4 बजकर 38 मिनट से लग रहा है और एकादशी तिथि अगले दीन यानी 13 अक्टूबर को दोपहर 02 बजकर 35 मिनट तक रहेगा। परमा एकादशी व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण है। जिसका उल्लेख हम पहले ही कर चुके है। क्योंकि यह एकादशी व्रत तीन वर्ष में एक बार आता है। इस व्रत को रखने वाला श्रद्धालु भगवान विष्णु के कृपा का भागी बनता है।
कैसे करें पूजन?
परमा एकादशी व्रत तीन वर्ष में एक बार आता है। ऐसे में हम आपको इस व्रत के पूजन विधि के बारे में आपको बताएंगे। परमा एकादशी की तिथि इस वर्ष 12 अक्टूबर को शाम 4 बजकर 38 मिनट पर लग जा रहा है किन्तु व्रत एकादशी में उदया तिथि को रखा जाएगा। परमा एकादशी तिथि में 13 अक्टूबर के दिन सूर्योदय होगा। इस दिन इस व्रत को श्रद्धालु रखेंगे। इस दिन व्रत रखने वाले श्रद्धालु को प्रातः उठकर स्नान करके सूर्योदय के समय भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना चाहिए। यदि संभव हो तो श्रद्धालु इस दिन पीताम्बर वस्त्र धारण करें। यह अत्यंत शुभ माना जाता है। पीताम्बर रंग प्रसन्नता का रंग मना जाता है। यह रंग भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इसके बाद आसन लगा कर भगवान विष्णु की पूजन एवम स्तुति पाठ करना चाहिए। भगवान विष्णु को भोग लगाए और पीला पुष्प भी अर्पित करें। एकादशी के दिन भगवान विष्णु के भजन गायन और कीर्तन करना भी अत्यंत ही फलदाई माना जाता है।
परमा एकादशी व्रत का महत्व
जैसा कि हम पहले ही उल्लेख कर चुके है कि परमा एकादशी अत्यंत महत्वपूर्ण है । क्योंकि यह एकादशी तीन वर्ष में एक बार पड़ती है। यह व्रत अधिक मास के कृष्ण पक्ष में एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस व्रत ने दान का महत्व बताया गया है तथा इस व्रत को सर्वकामना पूर्ति हेतु भी श्रद्धालु इसे रखते है। इस दिन व्रत ना करने वाले भी यदि धार्मिक वस्तुओं का दान करते है,तो उन्हें भी व्रत का पुण्य प्राप्त होता है।