अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को विश्व भर में मनाया जाता है, इस दिन संपूर्ण विश्व की महिलाएं देश, जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं।
इस लेख के लेखक श्री संदीप पाण्डेय जी है, जो भारत प्रहरी पत्रिका के संपादक मंडल के सदस्य है एवम बीटीसी और बीएड के विभागाध्यक्ष है।
प्राचीन काल में महिलाओं की स्थिति बहुत सम्मानजनक थी, उन्हें सभी क्षेत्र में अधिकार प्राप्त था। प्रथा का प्रचलन नहीं था, विधवा विवाह होते थे, पर्दा – प्रथा नहीं था, कुछ मामूली बंदिशें थी, बावजूद इसके महिलाओं का अस्तित्व था। स्त्रियों के प्रति लोगों के दृष्टिकोण आदर्शात्मक थी, लेकिन धीरे-धीरे सामाजिक कुप्रथाओं का प्रचलन बढ़ने लगा और मध्य काल में महिलाओं की स्थिति बिगड़ गई। पर्दा – प्रथा, बाल विवाह, वेश्यावृत्ति, विधवा महिलाओं की दुर्दशा, तलाक, दहेज – प्रथा आदि का प्रचलन होने से महिलाओं की दुर्दशा होने लगी।
आधुनिक भारत में महिलाओं की स्थिति थोड़ी सुदृढ़ हुई, लेकिन इनकी स्थिति सदैव एक समान नहीं रही है। अनेक उतार-चढ़ाव एवं परिवर्तन होते रहे हैं, 11 वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी के बीच भारत में महिलाओं की स्थिति दयनीय होती गई। एक तरह से यह महिलाओं के सम्मान विकास और सशक्तिकरण का अंधकार युग था, मुगल शासन, सामंती व्यवस्था, विदेशी आक्रमणकारी और शासकों की विलासिता पूर्ण प्रवृत्ति ने महिलाओं को उपभोग की वस्तु बना दिया और इसके कारण समाज में बाल विवाह, पर्दा – प्रथा, अशिक्षा आदि विभिन्न सामाजिक कुरीतियों का समाज में प्रवेश हुआ, जिसने महिलाओं की स्थिति को हीन बना दिया,तथा उनकी निजी एवं सामाजिक जीवन को कलुषित कर दिया लेकिन 19वीं सदी के मध्य से 21वीं सदी तक आते-आते महिलाओं की स्थिति में पुनः सुधार हुआ और महिलाएं शैक्षिक राजनीतिक सामाजिक आर्थिक धार्मिक प्रशासनिक खेलकूद आदि विविध क्षेत्रों में उपलब्धियों के नए आयाम तय किए क्षेत्रों ममें,उपलब्धियों के नए आयाम तय किए।
अनेक उतार-चढ़ाव के बावजूद आज महिलाएं आत्मनिर्भर एवम आत्मविश्वासी है। जिसने पुरुष प्रधान चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में भी अपनी योग्यता प्रदर्शित की है वह केवल शिक्षिका नर्स स्त्री रोग की डॉक्टर ही नहीं बल्कि इंजीनियर सेना वैज्ञानिक पायलट पत्रकारिता जैसे क्षेत्रों को अपना रही हैं राजनीति के क्षेत्रों में भी महिलाएं नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं।