शुभांकर दास
उड़ीसा के अभिनेता शुभांकर दास के साथ बातचीत के संपादित अंश

उड़ीसा के अभिनेता शुभांकर दास के साथ बातचीत के संपादित अंश, फिल्म रुस्तम में काम करने वाले अभिनेता शुभांकर दास कहते है,की ” आप जटिलताओं से भगिए मत बल्कि उनका डटकर सामना करें,तभी आप एक सफल व्यक्ति बन सकते है” आइए पढ़ते है उनसे बातचीत के संपादित अंश

कौन है? शुभांकर दास 

शुभांकर दास

शुभांकर दास एक अभिनेता है। जिनका जन्म उड़ीसा के बालेश्वर जिले में हुआ था। शुभांकर दास ने अपने अभिनय की शुरुआत थियेटर से कि थी। थियेटर से पहले शुभांकर दिल्ली में एक नौकरी करते थे लेकिन बचपन से ही अभिनय में रुचि होने के कारण इन्होंने जॉब छोड़ दिया और फिर यह एक्टिंग के फील्ड में आ गए। इन्होंने दिल्ली में 2 साल थियेटर करने के बाद भारतेन्दु नाट्य अकादेमी लखनऊ में प्रवेश प्राप्त किया। शुभांकर दास ने लख़नउ स्थित भारतेन्दु नाट्य अकादेमी ने नाट्य डिप्लोमा प्राप्त करने के बाद मुंबई की तरफ रुख किया। इसके बाद इन्होंने फिल्म रुस्तम,मुक्ति,अफसोस,जजमेंटल है क्या? , स्कूल चलेगा में काम किया। इसके अतिरिक्त इन्होंने शॉर्ट फिल्म मुक्ति और धागा में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई। शुभांकर ने कई टीवी सीरीज और वेब सीरीज में भी काम किया है। शुभांकर दास एक बड़े एवम प्रतिष्ठित अभिनेता के रूप में प्रतिस्थापित होना चाहते है।

आपने अपने कैरियर के लिए अभिनय को ही क्यों चुना?

मेरे अंदर बचपन से ही अभिनय के पीछे रुचि थी। इसका कारण यह है कि मेरी दादी मां एक बंगाली औरत थी और मेरे दादाजी उड़ीसा के रहने वाले थे। आज़ादी से पहले महिलाओं का अनपढ़ होना आम बात थी किन्तु मेरी दादी उस जमाने में भी एक पढ़ी लिखी औरत थी। शादी के बाद दादी ने उड़ीसा की स्थानीय भाषा के बारे में भी पढ़ाई कर लिया। उस समय के लोगों में सामाजिक कुरुतियों को लेकर ज्यादा जागरूकता नहीं होती थी। समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने के लिए मेरी दादी ने जागरूकता अभियान के तहत नाटकों का मंचन करवाना आरंभ किया। इन सब चीजों से मेरे पिता जी पर भी प्रभाव पड़ा और स्वयं नाटकों में अभिनय करते थे। उन्होंने अपने कॉलेज टाइम मे बहुत सारे नाटकों को निर्देशित किया और अभिनय भी किया। दूसरी चीज मेरे एक अंकल जिनका नाम रॉबिन दास है, जो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली में प्रोफेसर भी रहे है। उनका थियेटर के फील्ड में थे और वह कभी – कभी अपने स्टूडेंट को हमारे गांव में भी वर्कशॉप करने के लिए लाया करते थे। वर्कशॉप के बाद नाटकों का मंचन भी होता था। मैं जब उनके नाटकों को देखता था तो मेरे अंदर भी एक ललक उत्पन्न होती थी,की क्यों ना मै भी अभिनय ही करू? इन सबके अतिरिक्त हमारे यहां जात्रा आते थे। जात्रा, जो यात्री रंगकर्मी होते थे। मतलब जो यात्रा करते थे और जगह – जगह पर रुक कर नाटकों का मंचन करते थे। मैं उन सबको भी देखता था तो मेरे कहने कहने का अर्थ है कि मेरे जीवन पर इन सबका असर पड़ा और मैं थियेटर और अभिनय की दुनिया में आ गया।

आपका रोल मॉडल कौन है?

मेरे दो रोल मॉडल है,एक मेरे पिताजी जो खुद थियेटर करते थे। मैंने कभी अपने पिताजी को थियेटर करते हुए नहीं देखा,किंतू मैंने उनके एक्टिंग करते हुए,जो फोटोग्राफ है,उनको जरूर देखा है। मैंने लोगों से भी उनके एक्टिंग करने की बात सुनी है। मेरे पापा ही थे जिन्होंने मुझे सपोर्ट किया जब मैंने अपने मन की बात उन्हें बताई की मैं थियेटर करना चाहता हूं। दूसरे रोल मॉडल मेरे चाचा रॉबिन दास जी है। मैंने इन्हे अभिनय करते हुए देखा है, इन्होंने मुझे अपनी टीम में शामिल किया मुझे थियेटर करने के लिए प्रोत्साहित भी किया। मै इन्हे ही अपना रोल मॉडल मानता हूं।

आपके काम के पीछे आपके परिवार का कैसा सपोर्ट रहा?

मेरे चाचा थियेटर में थे,इसलिए उनको देखकर मेरे परिवार ने मुझे थियेटर में जाने से बिल्कुल मना कर दिया। क्योंकि उनको लगता था कि थियेटर में रहने वाले ज्यादा पैसा नहीं कमा सकते है। वह ठीक से अपने परिवार का भरण – पोषण नहीं कर सकते थे। जब मैंने जॉब करके कुछ पैसे परिवार को दिया,फिर मैंने अपने परिवार के सामने प्रस्ताव रखा की में थियेटर के बिना नहीं रह सकता मेरे अंदर जो अभिनय का कीड़ा है यह निकाल नहीं सकता, मैं जॉब करके खुश नहीं रह सकता। तब मेरे परिवार ने हामी भरी और मैं इस फील्ड में आ गया।

शुभांकर दास
शुभांकर दास

COVID-19 का आपके कैरियर पर क्या प्रभाव पड़ा?

मेरे कैरियर पर बहुत ज्यादा प्रभाव तो नहीं पड़ा हां मै यह अवश्य कहना चाहता हूं कि पहले चार महीने जब हम घर बैठे थे तब हमे बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था,लेकिन जब लॉकडाउन खत्म हो गया और जून महीने के बाद शूटिंग चालू हुई तब मेरे लिए थोड़ा फायदा हुआ। बहुत सारे लोग लॉकडाउन में घर चले गए,लेकिन मै किन्हीं कारणों से घर नहीं जा पाया यह मेरे लिए सही साबित हुआ। क्योंकि जब कास्टिंग डायरेक्टर मुझे कॉल करते और पूछते थे कि आप अभी मुंबई में है या फिर मुंबई के बाहर तो मै उन्हें बताता था कि मैं मुंबई में हूं। इस प्रकार से मुझे कई प्रोजेक्ट मिले। मैं इन सबके बाद भी कहना चाहूंगा,की इस महामारी के जैसा समय कभी ना आए।

आपको अब तक कैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा?

 देखिए जीवन में समस्याओं का आना तो लगा रहता है,समस्याएं तो आएंगी ही, जैसे एक अच्छे खाने में मिर्च को होना बहुत ज़रूरी होता है वैसी ही समस्याएं है। यदि आप मीठा – मीठा ही खाएंगे तो आपको अच्छा नहीं लगेगा इस लिए थोड़ा तीखा स्वाद भी लेना जरूरी है। आप जटिलताओं से भाग नहीं सकते है। यदि आपके जीवन में जटिलताएं आती है तो आपको उनका सामना करना चाहिए,यदि आप उन जटिलताओं को लेकर बैठ जाएंगे तो आप बीमार भी पड़ सकते है। मेरे जीवन में भी बहुत सी समस्याएं आईं। जैसे पैसों की समस्याएं तो मैंने धीरे – धीरे सभी समस्याओं को दूर भगाया, ना की मैं उन समस्याओं को लेकर बैठ गया।

आप आगे कहां काम करना चाहते थे?

मैं केवल अच्छे कांसेप्ट पर काम करना चाहता हूं। चाहे वह टीवी सीरियल हो,शॉर्ट फिल्म हो,वेब सीरीज हो या फिर फिल्म हो बस अच्छा कांसेप्ट होना चाहिए। मैं उन डायरेक्टर के साथ भी काम करना चाहूंगा,जो नए आए है। हमे उनकी भी मदद करनी चाहिए जो शॉर्ट फिल्में बना कर अवॉर्ड पाना चाहते है। क्योंकि जैसे हमे किसी ने पहली बार चांस दिया हमे भी उन नए डायरेक्टर को चांस देना चाहिए।

भारत प्रहरी

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भारत प्रहरी एक पत्रिका है,जिसपर समाचार,खेल,मनोरंजन,शिक्षा एवम रोजगार,अध्यात्म,...

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