जिउतिया व्रत 2020 : पुत्र के सुख – समृद्धि और लंबी आयु को रखने वाला जीउतिया या जितिया व्रत कब है?

जिउतिया व्रत 2020 : पुत्र के सुख – समृद्धि और लंबी आयु को रखने वाला जीउतिया या जितिया व्रत कब है? इस जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से जानते है।हिन्दू धर्म में महिलाएं अपने पुत्र के लंबी आयु एवम पुत्र के सुख – समृद्धि के लिए रखती है, जीउतिया या जितिया व्रत

जीउतिया व्रत अश्विन माह की कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत महिलाएं अपने पुत्र के लंबे जीवन,रोग मुक्त रहने और उनके सुख – समृद्धि के लिए रखती है। इस बार यह व्रत 10 सितंबर को पड़ रहा है। अतः इस अश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 10 सितंबर को पड़ी है । महिलाएं इस व्रत को बड़ी ही श्रद्धा के साथ रखती है। इस व्रत के बारे मैं सभी जानकारियां हम आपको आगे एक – एक करके बताएंगे।

जीवित्पुत्रिका या जीउतिया व्रत पूजन विधि, मुहूर्त एवम पारण,तीन दिन का है यह व्रत

जीवित्पुत्रिका या जीउतिया व्रत जैसा कि हम पहले ही बता चुके है  अश्विन माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है यह तिथि इस बार 9 सितंबर 2020 को दोपहर 01.35 बजे से लग का रहा है और अष्टमी तिथि की समाप्ति 10 सितंबर को दोपहर 03.04 बजे तक रहेगा । यह व्रत उस दिन रखा जाता है जिस दिन सूर्य अष्टमी तिथि में उदय होता है,9 सितंबर को अष्टमी तिथि दोपहर में ही लग जा रही है,किन्तु सूर्य 10 सितंबर को अष्टमी तिथि में उदय होगा। अतः जीवित्पुत्रिका या जीउतीया व्रत 10 सितम्बर को क्यों मनाया जाएगा इसके बारे में हमने आप को बता दिया। अब बात करे पूजन विधि और व्रत के बारे में तो आपको बता दे की यह व्रत बिल्कुल हरितलिका तीेज की ही तरह निर्जला अर्थात बिना जल ग्रहण किए ही रहना पड़ता है। इस व्रत के पहले दिन,इस व्रत को रखने वाली माताएं प्रातः सूर्योदय के बाद स्नान – ध्यान करके पूजन करके  एक बार भोजन ग्रहण करती है और फिर इस व्रत को दिनभर निर्जला रखती है। अगले दिवस पुनः दिनभर निर्जला व्रत रखती है। शाम को प्रदोषकाल में कुशा से जीमूतवाहन कि प्रतिमा बनाकर फल,पुष्प और अक्षत अर्पण करके पूजा जाता है। पूजा में गाय के गोबर अथवा मिट्टी द्वारा महिलाएं चील और सियारीन की प्रतिमा बनाकर उन्हें भी पूजा जाता है। पूजन करने के पश्चात महिलाएं जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत की कथा भी सुनती है,जो अत्यंत कल्याणकारी है। महिलाएं नवमी के दिन सूर्योदय के पश्चात सूर्य को अर्घ्य देकर ही अपने व्रत का पारण करेंगी,पारण अर्थात महिलाएं अन्न – जल ग्रहण कर के अपना व्रत खंडित कर सकती है।

जिउतिया व्रत की प्रचलित लोक कथा,चिल और सियारिन कि कथा

एक बार एक पहाड़ी के नीचे चिल और सियारिन मित्रतापूर्वक रहते थे।दोनों ने एक बार जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत रखने का निश्चय किया। दोनों दिनभर जितिया व्रत निर्जला रहे,किन्तु सियारिन व्रत रहने के बाद भी दिन भर हड्डियां एकत्रित करती रही।इधर चिल ने विधिपूर्वक जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत का पालन किया। जब दोनों संध्या काल में पुनः एकत्र हुए तब सियारिन ने अपनी मांद में हड्डियां को खाना शुरू किया। हड्डियों के खाने के वजह से सियारिन का दांत कटकटा रहा था,चिल ने यह आवाज़ सुनकर इसके बारे में सियारिन से उत्तर मांगा तब सियारिन ने वृक्ष पर बैठे चिल से कहा कि भूख के मारे करवट बदलने पर मेरी हड्डियां कट कटा रही है। जब दोनों बूढ़े होकर मर गए तो पुनः उन्होंने मनुष्य योनि में जन्म लिया। सियारिन ने क्षत्रिय राजा के पुत्री के रूप में जन्म लिया और चिल ने एक बड़े नगर व्यापारी के पुत्री के रूप में जन्म लिया।

जब दोनों युवा हुई तब दोनों ही का विवाह एक ही नगर में हुआ,सियारिन उस नगर की रानी बनी और चिल उस नगर की व्यापारी की वधू जितिया व्रत के आशीर्वाद के कारण चिल को मनुष्य जन्म में दो पुत्र प्राप्त हुए और सियारिन को मनुष्य जन्म में कोई भी पुत्र प्राप्त नहीं हुआ। वह रानी होते हुए भी बांझ थी। एक बार चिल के ससुर ने उसके पुत्रों को खेलने के लिए मिट्टी का घोड़ा दिया। दोनों बालक एक बार मिट्टी के घोड़े से खेलते खेलते रानी के स्नानगार पहुंच गए। वहां पर दोनों ने घोड़े को पानी पीने की बात कहीं जिसपर रानी ने दोनों बालको का उपहास किया। दोनों ही बालक अपने उपहास को सहन नहीं कर पाए और नगर में रानी के बांझपन को लेकर की जाने वाली बातों को रानी के सम्मुख क्रोध में का दिया। जिसपर रानी एकदम क्रुद्ध हो गई और राजमहल में जाकर बैठ गई तथा अन्न जल त्याग दिया। जब राजा को रानी के क्रोध के बारे में पता चला तो वह तुरंत ही रानी के कक्ष में जाकर उनसे क्रोध के कारण के बारे में पूछा। रानी ने सारा विवरण राजा को सुनाया और कहा कि जब तक नगर सेठ के दोनों पुत्रों को मार नहीं दिया जाता तब तक वह अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगी। रानी के इस प्रण के कारण राजा ने अगले दिन प्रातः ही नगर सेठ के दोनों बच्चो को मारने का आदेश दे दिया। जब यह बात दोनों बालकों के दादा को पता चली तब वह चिंतित हो गए। जिस दिन राजा ने आदेश दिया उस दिन जितिया व्रत था और नगर सेठ की वधू और दोनों बालको की माता ने जितिया व्रत रखा था जैसे ही जीमूतवाहन कि पूजा करके घर लौटी उसे भी उसके पुत्रों को मृत्यु दण्ड मिलने की बात पता चली। तब नगर सेठ की पत्नी ने रानी से स्नानागार में आने को कहा दोनों ही स्नानागार के तालाब के किनारे पहुंची। जो पिछले जन्म में चिल थी वही इस जन्म में व्यापारी की पत्नी थी। जो इस जन्म में रानी थी वह पिछले जन्म में सियारिन थी । चिल को इस जन्म में भी पिछला जन्म ज्ञात था उसने सियारिन को पिछले जन्म की सभी बातें याद दिलाई,चिल द्वारा पिछला जन्म याद दिलाने पर सियारिन अर्थात रानी को पिछला जन्म याद तो हो गया और वह अपने कर्मो पर लज्जित हुई और व्यापारी की पत्नी के दोनों पुत्रों के मृत्यु दण्ड वापस ले लिया। जब सियारिन ने चिल से पिछले जन्म के बारे ने पूछा कि तुम्हे मेरे इस कार्य के बारे में नहीं ज्ञात था तो फिर तुम्हें कैसे यह घटना याद है। तब चिल ने इसका उत्तर देते हुए कहा कि जब तुम हड्डियां खा रही थी तब मैंने पेड़ पर बैठे बैठे ही इस कार्य को देख लिया था,किन्तु मैंने तुमसे इस बारे में कुछ नहीं कहा। यह सभी बातें सुनकर रानी को पश्चाताप हुए और उन्होंने जीमूतवाहन गंधर्व से क्षमा मांगी।

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